Mrs. Movie
जैसा मानव कौल ने किसी इंटरव्यू में कहा था कि जो वस्तु हमें प्राप्त नहीं होती, उसके लिए हम भीतर से तैयार भी नहीं होते। यह पंक्ति केवल एक साधारण कथन नहीं, बल्कि मनुष्य की सम्पूर्ण जिजीविषा और आकांक्षाओं का दर्पण है। यह वही अदृश्य धागा है जो हमारे स्वप्नों को यथार्थ से जोड़ता है और कई बार हमें स्वयं के अंतराल में उतरने को बाध्य करता है।
मानव कौल की यह पंक्ति केवल शब्द नहीं बल्कि जीवन के गर्भ में छुपा वह बीज है, जो समस्त असफलताओं और अधूरी आकांक्षाओं की जड़ को उधेड़ देता है। जो कुछ हमें नहीं प्राप्त होता, वह इसलिए नहीं कि ईश्वर ने हमें ठुकरा दिया, बल्कि इसलिए कि हमारे भीतर उसकी पात्रता अभी नहीं जन्मी। यह सरल सत्य मनुष्य की आत्मा को उसी क्षण जाग्रत कर सकता है, जब वह अपनी दुर्भाग्य की कड़वी शिकायतों को छोड़ कर अपने भीतर की अधूरी तैयारी को देखना प्रारम्भ करता है।
ऋग्वेद कहता है कि आत्मा अनंत है पर उसका विस्तार तभी होता है जब साधक अपनी सीमाओं को पहचान कर उनका अतिक्रमण करता है। स्वप्न केवल कल्पना नहीं है, वह आत्मा की आवाज है। पर वह आवाज जब तक कर्म से नहीं जुड़ती तब तक केवल गूँज बन कर रह जाती है। जो व्यक्ति अपने स्वप्न को अपनी तपस्या में ढाल लेता है, उसके लिए सृष्टि स्वयं अपनी सारी शक्तियों को समर्पित कर देती है।
मनुष्य के स्वप्न मूक रहते हैं। वे तब तक शब्द नहीं पाते, जब तक उनका स्वामी स्वयं को उनके योग्य नहीं बनाता। दिवाकर की कहानी इसका ज्वलंत प्रमाण है। उसके जीवन में वर्षों तक उथल-पुथल, उपेक्षा और अव्यवस्था का बोलबाला रहा। किन्तु भीतर कहीं एक मौन आकांक्षा थी कि एक दिन उसके अस्त-व्यस्त जीवन में कोई आएगा, जो उसकी थकान को अपना स्नेह देकर सहेज लेगा। इसी मौन ने उसकी अंतरात्मा को धीरे-धीरे तैयार किया। जब उसकी आत्मा उस सुकून के स्वागत को सक्षम हुई, तब उसे जीवन ने वह नई गृहिणी दी, जिसने उसके टूटे हुए कोनों को फिर से सजाया।
ऋचा की कहानी भी इसी सिद्धांत का विस्तार है। उसका सपना वर्षों तक उसके मन में कोंपल बन कर दबा रहा। भय और असुरक्षा ने उसे कई बार रोकना चाहा। पर जैसे ही उसने भीतर के डर को बाहर फेंका और अपने पाँवों को नृत्य की ताल से बाँधा, वैसे ही उसका भाग्य झुक कर उसके सपने को आशीर्वाद देने आ पहुँचा। उसकी डांस अकादमी उसी साहस का परिणाम है, जो उसके भीतर उसके डर से बड़ा हो गया।
यह संसार एक विशाल मंच है। हर भूमिका उसी को मिलती है, जो उसका अभिनय करने की कला सीख लेता है। यदि कोई पात्र भीतर से रिक्त है तो उसे कोई संवाद नहीं दिया जाएगा। यही कारण है कि हम अक्सर अपने चारों ओर असंख्य असफलताएँ देखते हैं। यह असफलताएँ भाग्य की क्रूरता नहीं बल्कि हमारी आत्मा की अपूर्ण तैयारी का प्रतिबिम्ब हैं।
इच्छाएँ तब तक केवल धुंधले स्वप्न रहती हैं, जब तक उन्हें सही दिशा और साधना नहीं दी जाती। हर इच्छा को फल में बदलने के लिए उसे तप की आँच पर पकाना पड़ता है। बिना तप के हर स्वप्न अधपका रह जाता है और अंततः सड़ कर मिट्टी में विलीन हो जाता है। यही कारण है कि हमारी अधिकांश कामनाएँ एक समय बाद बोझ बन जाती हैं।
मनुष्य को अपनी तैयारी की गंभीरता को समझना होगा। यदि वह प्रेम चाहता है तो पहले उसे प्रेम देने की क्षमता अर्जित करनी होगी। यदि वह सम्मान चाहता है तो उसे पहले अपने आचरण को आदर्श बनाना होगा। यदि वह वैभव चाहता है तो उसे परिश्रम की खेती करनी होगी। यह प्रकृति का अटल नियम है कि बीज बिना सींचे फल नहीं देता। नदी बिना निरंतर बहाव के समुद्र तक नहीं पहुँचती। दीपक बिना तेल के जल नहीं सकता।
जीवन प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन अवसर देता है कि वह स्वयं को अपने स्वप्नों के योग्य बनाए। यह अवसर कभी परिश्रम के रूप में आते हैं तो कभी पीड़ा के रूप में। हर पीड़ा एक पत्थर है, जिसे घिस कर आत्मा अपनी तेज धार बनाती है। दुख के झोंके मनुष्य को भीतर से इतना मज़बूत कर देते हैं कि वह फिर किसी तूफ़ान से नहीं डरता।
कभी-कभी ईश्वर हमारी झोली खाली ही रहने देता है ताकि हम भीतर की मिट्टी को जोतना सीखें। जब यह भूमि उर्वर हो जाती है तब वह वही बीज उसी झोली में वापस डाल देता है। तब वह बीज अंकुर बन कर सिर उठाता है और अपने पत्तों से सूरज का आलोक पीता है। यह वह अवस्था है जब व्यक्ति को प्रतीक्षा का मूल्य समझ आता है।
प्रकृति हमें हर पल संकेत देती है। बीज कभी शिकायत नहीं करता कि वह अंधेरे में दफन कर दिया गया। वह अंधेरा ही उसकी शक्ति बनता है। वही अंधेरा उसे धरती को चीर कर बाहर निकलने का साहस देता है। मनुष्य को भी यह समझना होगा कि उसके जीवन के अंधेरे ही उसका असली गुरुकुल हैं। वहीं उसकी पात्रता आकार लेती है।
जिस दिन मनुष्य यह सीख लेता है कि प्राप्ति से पहले पात्रता का निर्माण अनिवार्य है, उसी दिन उसका भाग्य उसके चरणों में आ बैठता है। उसे फिर किसी ज्योतिषी की ओर देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती। उसका आत्मविश्वास ही उसका सबसे बड़ा ज्योतिषी बन जाता है।
यदि कभी लगे कि जीवन ने अन्याय किया है तो केवल अपनी आत्मा से प्रश्न कीजिए कि क्या आप उस इच्छा के योग्य थे। यदि उत्तर ना में मिले तो तुरंत स्वयं को उस योग्य बनाने में जुट जाइए। जब तक भीतर की तैयारी पूरी नहीं होती, तब तक कोई वरदान पूर्ण नहीं होता।
स्वप्न देखने से बड़ा पुण्य कुछ नहीं। पर स्वप्नों को साधने के लिए निरंतर साधना करना उससे भी बड़ा धर्म है। यह साधना ही भविष्य की नींव है। यही साधना हमें मिट्टी से सोना बनाती है। यही साधना हमें अपनी सीमाओं से परे ले जाती है। यही साधना हमारे भाग्य को हमारी मुट्ठी में बाँध देती है।
मनुष्य को कभी हार मानने का अधिकार नहीं है। हार केवल संकेत है कि अभी तैयारी अधूरी है। जितना बड़ा सपना होगा, उतनी ही गहरी तैयारी करनी होगी। यदि तैयारी सच्ची होगी तो सारा विश्व मिल कर भी उस स्वप्न को पूरा होने से रोक नहीं सकेगा।
यही अंतिम सत्य है कि संसार में हर इच्छा पूर्ण हो सकती है। इसके लिए केवल आत्मा को तैयार करना होगा। तब एक दिन सब कुछ मिलेगा। इतना मिलेगा कि वह स्वयं अपने भाग्य की विशालता पर विस्मित रह जाएगा। जब भीतर तैयारी पूर्ण होती है तो बाहरी दुनिया स्वयं झुक कर उसे वह सब सौंप देती है, जो कभी असंभव प्रतीत होता था।
इसलिए जो कुछ भी आज नहीं मिला है, उसके लिए दुःखी मत होइए। आँखें मूँद कर अपने भीतर उतरिए। उस शक्ति को पहचानिए जो अभी तक सुप्त है। उसे जागृत कीजिए। जैसे ही यह जागृति पूर्ण होगी, वैसे ही संसार आपके स्वप्नों को आपके चरणों में अर्पित कर देगा। यही इस जीवन का सबसे बड़ा रहस्य है। यही इस जीवन का सबसे सच्चा वचन है। यही मानव कौल के शब्दों में छुपा अमूल्य संदेश है।
अन्ततः मैं बस यही कहना चाहूँगा कि चाहे आपको कुछ न मिले, फिर भी तैयारी मत छोड़िए। एक दिन मिलेगा और इतना मिलेगा कि आप स्वयं को भी न पहचान पाएँगे। क्योंकि सृष्टि का नियम यही है — पात्र बनो, प्रसाद अपने आप मिलेगा। यही आत्मा से ब्रह्मांड तक की अद्भुत यात्रा है। #SXMRXXT
#Mrs. #ManavKaul #LifeIsAllAboutChoices 🖤⃝🦋
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